Agra Hindi News: पहले छीनी आजीविका फिर मुखिया को दी दर्दनाक मौत.अलमारी के एक कारखाने में काम कर परिवार का गुजारा चलाता था शख्स, मौत के बाद उसका परिवार अन्न के दाने दाने को हुआ मोहताज.
हफीज जालंधरी का लिखा एक शेर है, ‘मिरी मजबूरियां क्या पूछते हो कि जीने के लिए मजबूर हूं मैं’ ये लाइनें गरीब की जिंदगी को काफी हद तक बयां करती हैं। गरीबी इंसान से काफी कुछ छीन लेती है, फिर भी उन हालातों में लोगों को हर हाल में जीना पड़ता है। मजबूरी की ऐसी ही कहानी बयां करता मामला आगरा में सामने आया है। यहां चार बच्चों के पिता से लॉकडाउन ने आजीविका का साधन छीन लिया। फिर टीबी की दवा न मिलने से उसकी जान चली गई। मौत के बाद उसकी पत्नी और चार बच्चों की कुछ दिनों तक मृतक के भाई ने मदद की। लेकिन अब परिवार को अन्न के एक एक दाने का मोहताज होना पड़ रहा है।
टीबी की दवा के लिए भटकते रहे परिजन
मृतक के भाई रिंकू के अनुसार उसका भाई राकेश कुमार अपने परिवार के साथ सीता नगर में किराए पर मकान लेकर रहता था। नुनिहाई में अलमारी के एक कारखाने में काम कर परिवार का गुजारा चलाता था। लेकिन लॉकडाउन के चलते काम बंद हो गया। छह माह से उसका टीबी का इलाज चल रहा था। इस बीच उसकी दवाएं खत्म हो गईं। पता करने पर भी कहीं दवा नहीं मिली। जैसे तैसे पड़ोस के एक घर में टीबी एक मरीज ने एक गोली दे दी, लेकिन ज्यादा न दे पाने में असमर्थता जतायी। दवा न मिलने से 18 अप्रैल को राकेश की तबियत बिगड़ गई। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। पड़ोसी राकेश को लेकर एसएन की इमरजेंसी में लेकर गए, लेकिन वहां उन्हें भर्ती नहीं किया गया। टीबी की दवा के लिए काफी भटकने पर भी परिवारीजनों को दवा नहीं मिली। 20 अप्रैल को तड़प तड़प कर राकेश ने दम तोड़ दिया।
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परिवार अन्न के एक एक दाने को मोहताज
राकेश की मौत के बाद उसकी पत्नी बबिता और चार बच्चों ने कुछ समय तो बचत के पैसों से गुजारा चलाया। थोड़ी बहुत मदद उसके देवर रिंकू ने कर दी। लेकिन लॉकडाउन के चलते रिंकू के पास भी काम नहीं है। इन हालातों में परिवार एक एक दाने का मोहताज हो गया। रिंकू का कहना है कि उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। पड़ोसी तरस खाकर कभी कभी आटा दे देते हैं, उसी से किसी तरह परिवार का गुजारा करना पड़ता है।